फिक्स्ड चिमनी बुल्स ट्रेंच भट्ठा (एफ.सी.बी.टी.के.) टैक्नोलॉजी भारत, बांग्लादेश, नेपाल और पाकिस्तान में ईंट बनाने की सबसे लोकप्रिय टैक्नोलॉजी है।
इसकी लोकप्रियता के प्रमुख कारण हैं :
बी.टी.के. टैक्नोलॉजी की लोकप्रियता के बावजूद इसमें कई कमियां हैं।
बी.टी.के. की तीन प्रमुख कमियां निम्न हैं :
बी.टी.के. में इस्तेमाल में लाए जाने वाले कोयले की काफ़ी बड़ी मात्रा का पूरी तरह उपयोग नहीं हो पाता है अतः वह कोयला बर्बाद हो जाता है। कोयले का पूरी तरह न जलना और भट्ठे से होने वाली ऊष्मा या हीट की हानि इसके प्रमुख कारण हैं।
इस्तेमाल में लाए गए लगभग 25 प्रतिशत कोयले को साधारण उपायों के जरिये बचाया जा सकता है। उत्तर भारत में 40-50 लाख ईंटों के सालाना उत्पादन वाले बी.टी.के. में 25 प्रतिशत कोयले की बर्बादी का अर्थ साल भर में करीब 100-150 टन कोयले की अधिक खपत है। इसका आशय है कि आप कोयले की बर्बादी के कारण हर साल 5 लाख रुपये से 15 लाख रुपये अतिरिक्त खर्च कर रहे हैं। यह बहुत बड़ा नुकसान है!
औसतन, बी.टी.के. में पकायी जाने वाली केवल 60 प्रतिशत ईंटें ही क्लास-I ईंटे होती हैं। बाकि 40 प्रतिशत ईंटे या तो पूरी तरह पक नहीं पातीं या ज्यादा पक जाती हैं या फिर टूट जाती हैं।
यदि आप उत्तर भारत में बी.टी.के. मालिक हैं, तो खराब गुणवत्ता वाली ईंटों का प्रतिशत अधिक होने की वजह से आप एक साल में 10 लाख से 30 लाख रुपये तक के मूल्य का नुकसान उठा रहे हैं। इतना ही नहीं, खराब गुणवत्ता वाली ईंटों की बिक्री में क्लास-I गुणवत्ता वाली ईंटों की तुलना में कहीं ज्यादा समय लगता है, ऐसे में आपकी इन्वेटरी कॉस्ट बढ़ जाती है और आपकी पूंजी ब्लॉक हो जाती है।
बी.टी.के. में बड़े पैमाने पर ईंधन पूरी तरह जल नहीं पाता, जिसके चलते Particulate Matter (PM), कार्बन डाई-ऑक्साइड (CO2), कार्बन मोनो-ऑक्साइड (CO) आदि बड़ी मात्रा में उत्पन्न होते हैं। ये सभी वायु प्रदूषण का कारण बनते हैं। बी.टी.के. की चिमनी से निकलने वाले काले धुएँ की मात्रा वायु प्रदूषण की ओर संकेत करती है।
वायु प्रदूषण के हानिकारक प्रभाव ईंट भट्ठे के नज़दीकी इलाकों में सबसे ज्यादा महसूस किए जाते हैं। अत्याधिक वायु प्रदूषण आपके बी.टी.के. में काम करने वाले लोगों और साथ ही स्थानीय आबादी की सेहत पर भी प्रतिकूल असर डालता है। यह फसलों, पौधों और वृक्षों के स्वास्थ्य, बढ़त और पैदावार पर भी प्रतिकूल असर डालता है। CO2 और ब्लैक कार्बन का उत्सर्जन धरती का तापमान बढ़ाने यानी ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन में भी अपनी भूमिका निभाता है।