बुल्स ट्रेन्च भट्ठे (बी.टी.के.) की चिमनी से काला धुआं निकलता है, जिसमें बड़ी मात्रा में Particulate Matter (PM), कार्बन डाई-ऑक्साइड (CO2), कार्बन मोनो-ऑक्साइड (CO), सल्फर डाई-ऑक्साइड (SO2) आदि होते हैं। इस तरह के उत्सर्जन से भट्ठे के आसपास प्रदूषण फैलता है जिसका असर श्रमिकों और स्थानीय आबादी की सेहत, फसलों, वृक्षों आदि पर पड़ता है। CO2 और ब्लैक कार्बन का उत्सर्जन ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन में भी योगदान देता है।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, पटना, ढाका और काठमांडु जैसे शहरों में खराब गुणवत्ता वाली वायु का कारण कुछ हद तक उनके आसपास मौजूद विशाल ईंट भट्ठों के क्लस्टर्स से होने वाले उत्सर्जन रहा है।
बी.टी.के. में अत्यधिक वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं :
आम तौर पर दो फायरमैन मिलकर 5-10 मिनट के लिए बी.टी.के. में लगातार कोयले की झुकाई करते हैं और उसके बाद 30-40 मिनट का अंतराल रहता है। कोयले के मामले में, वे भट्ठे में ईंधन की झुकाई के लिए 1.5-2.0 किलोग्राम की क्षमता वाले बेलचों का इस्तेमाल करते हैं और प्रत्येक झुकाई के दौरान उनके द्वारा 150-300 किलोग्राम कोयले की झुकाई की जाती है।
ऐसे रुक-रुक कर इतनी अधिक मात्रा में कोयले की झुकाई करने से, ईंधन या कोयले की काफी मात्रा भट्ठे के तले में जमा हो जाती है. भट्ठे के नीचे इकट्ठे हुए इस कोयले को जलने की प्रक्रिया के लिए पर्याप्त हवा नहीं मिल पाती और वह अधजला ही रह जाता है, जो काले धूएं के रूप में Particulate Matter (PM) और CO का उत्सर्जन करता है और इस तरह पर्यावरण को प्रदूषित करता है।
बी.टी.के. में कोयला झुकाई के पारम्परिक तरीके में कोयले की झुकाई एक या दो लाइनों में करी जाती है। भट्ठे में झोंके गये कोयले से निकलने वाली गैसों को जलने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाता। ये बिना जली गैसें काले धूंए, पर्टिक्यूलेट्स और CO के रूप में भट्ठे से बाहर निकलती हैं।
बी.टी.के. में उपयोग में लाए जाने वाले कई ईंधनों में सल्फर की मात्रा बहुत अधिक होती है। उदाहरण के तौर पर, पेट्रोलियम कोक में सल्फर की मात्रा 2%–6%, असम और मेघालय से मिलने वाले कोयले में 1%–2% और रबर टायर्स में 1%–2% होती है। इन ईंधनों के जलने के परिणामस्वरूप SO2 का उत्सर्जन होता है, जिससे आसपास की हवा प्रदूषित होती है।