समीर मैथिल | मंगलवार 21 अप्रैल 2020
यह कहना गलत नहीं होगा की मिट्टी की पकी हुई ईंटे, भारत में मकान निर्माण के लिए सबसे पसंदीदा बिल्डिंग मटेरियल है। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में लगभग 12 करोड़, यानि लगभग 50 % घर, मिट्टी की पकी हुई ईंटो से बने हुए थे।
इस ब्लॉग में हम उन कारणों पर नज़र डालेंगे जो मिटटी की पकी हुई ईंट को एक पसंदीदा बिल्डिंग मटेरियल बनाते है।
लम्बी आयु: अगर हम अपने आसपास नज़र दौड़ायेंगे तो पकी हुई ईंटो से बनी कई सारी इमारते जैसे मकान, मंदिर, मस्जिद, महल, रेल के पुल, सरकारी इमारतें मिलेंगी जो 100 वर्ष या उससे पुरानी है। अच्छी प्रकार से पकी हुई ईंटो की आयु कई हज़ार वर्ष की हो सकती है, जैसा हड़प्पा से मिली ईंटे, जिनकी आयु 4000 वर्ष है।
स्ट्रक्चरल मजबूती: अच्छी प्रकार से पकी हुई ईंटो की कंप्रेसिव स्ट्रेंथ, 100 -300 किलो ग्राम / क्यूबिक सेंटीमीटर होती है, जो बिल्डिंग को स्ट्रक्चरल मजबूती प्रदान करती है। मिट्टी की पकी हुई ईंटो से बनी हुई दीवारों पर भारी अलमारी, स्टैंड, गीज़र आदि लगाये जा सकते है।
आग से सुरक्षा: मिट्टी की पकी हुई ईंटे ज्वलनशील नहीं होती, और बिल्डिंग में आग लगने के दौरान, आग के फैलने पर रोक लगाती है। क्योकि उत्पादन के दौरान इनको 1000 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर पकाया जाता है, इसलिए यह आग में काफी समय तक स्ट्रक्चरल स्ट्रेंथ बरक़रार रखती है।
बाढ़ व पानी से सुरक्षा: अच्छी प्रकार से पकी हुई ईंटे, बाढ़ या पानी में डूबने के बाद भी गलती नहीं है। ईंट जब गीली होती है, तो पानी ईंट में स्थित छोटे-छोटे छिद्रों में भर जाता है और सूखने के दौरान यह पानी, ईंट की सतह पर आकर वहा से उड़ जाता है।
बिजली की बचत: साधारण सॉलिड मिट्टी की पकी हुई ईंट की थर्मल कंडक्टिविटी, एक सॉलिड कंक्रीट ब्लॉक के मुक़ाबले 1/3 rd या एक तिहाई होती है, जिससे मिट्टी की ईंट की दिवार, एक कंक्रीट ब्लॉक से बनी दिवार के मुक़ाबले कम गर्मी का संचालन करती है। इसके साथ-साथ एक पकी हुई ईंट की दिवार में ताप को स्टोर करने की अच्छी क्षमता होती है। इस कारण गर्मी में मिटटी की पकी हुई ईंटो की दीवारों से बने हुए घर, कंक्रीट की दीवारों वाले घरो के मुक़ाबले ठन्डे रहते है। अगर मिटटी की पकी हुई ईंटो की दोहरी दीवार (दो दीवारों के बीच एयर गैप रख कर ) बनाई जाये, या दीवार पकी हुई मिट्टी के होलो ब्लॉक्स से बनाई जाये, तो घर और भी ठन्डे रखे जा सकते है। घर ठंडे रहने की वजह से एयर कंडीशनिंग में लगने वाली बिजली की बचत होती है।
मेंटेनेंस कॉस्ट में बचत: हम पहले ही देख चुके है की, पकी हुई ईंटो की लम्बी आयु होती है। पकी हुई मिटटी की ईंटो की दीवारों में AAC ब्लॉक्स की बनी दीवारों के मुक़ाबले क्रैक्स कम आते है, तथा पानी का असर कम होता है, इस कारण पकी हुई ईंटो की दीवारों पर मेंटेनेंस कॉस्ट कम आती है।
टॉक्सिक न होना: मिटटी से बनी ईंटो में कोई टॉक्सिक मटेरियल नहीं होता, जिससे आस पास के वातावरण व पानी में टॉक्सिसिटी के फैलने की सम्भावना नहीं होती।
दोबारा उपयोग की सम्भावनाये: पकी हुई मिटटी की ईंटो की आयु काफी ज्यादा है और उन्हें एक बिल्डिंग को तोड़ने के बाद फिर से सही सलामत निकाला व इस्तेमाल किया जा सकता है। इस तरह से एक बार पकाई गयी ईंट में लगे संसाधन और ऊर्जा, सैंकड़ों वर्षों तक काम में लिए जा सकते है।
सुंदरता: हालाँकि भारत में ज्यादातर मिटटी की ईंटे लाल रंग की होती है, तथा दीवार पर प्लास्टर करने का चलन ज्यादा है, मगर मिटटी की ईंटे कई प्रकार के रंग की हो सकती है, जैसे लाल, नारंगी, पीली,सफ़ेद,काली,गुलाबी, आदि जो एक बिल्डिंग की सुंदरता में चार चाँद लगा सकती है।
हाल के वर्षों में मिट्टी की पकी हुई ईंटो को बनाये जाने वाली प्रक्रिया में पर्यावरण हानि पर सरकार व समाज का ध्यान गया है, और ईंट उद्योग और सरकार दोनों की यह ज़िम्मेवारी बनती है की वह पर्यावरण को होने वाले नुकसान को कम करने के लिए एक समयबद्ध कार्यक्रम के तहत कदम उठाये। ऐसा कहा जा सकता है की आने वाले वर्षों में नए बिल्डिंग मैटेरियल्स, जैसे फ्लाई ऐश ब्रिक्स या AAC ब्लॉक्स का उपयोग बढ़ सकता है, मगर अगर ईंट उद्योग और सरकार ने समय रहते पर्यावरण संरक्षण के लिए मिल कर कदम उठाये तो मिटटी की पकी हुई ईंटे एक उत्कर्ष और पसंदीदा बिल्डिंग मटेरियल बनी रहेंगी।
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समीर मैथिल
लेखक: डायरेक्टर, ग्रीनटेक नॉलेज सौल्यूशन्स प्राइवेट लिमिटेड