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फ्लाई ऐश रेगुलेशन, 1999 में प्रस्तावित संशोधनों के संभावित प्रभाव भाग 1: क्या देश में ईंट की मांग को पूरा करने के लिए उपलब्ध फ्लाई ऐश की मात्रा पर्याप्त है?

समीर मैथिल | शुक्रवार 15 मार्च 2019

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने एक अधिसूचना दिनांक 25 फरवरी 2019 द्वारा देश में फ्लाई ऐश के उपयोग को बढ़ावा देने के लिये मौजूदा नियमन (का.आ.763 (अ) दिनांक 14 सितम्बर 1999) में संशोधन का प्रस्ताव किया है। नियमन में मसौदा संशोधन पर साठ दिनों की अवधि के दौरान प्राप्त आक्षेप या सुझाव पर मंत्रालय में विचार किया जाएगा।

यह एक श्रृंखला का पहला लेख है, जिसमें ब्रिकगुरु टीम फ्लाई ऐश रेगुलेशन में प्रस्तावित संशोधनों के विभिन्न प्रावधानों के संभावित प्रभावों और व्यवहार्यता का विश्लेषण करेगी। इन लेखों का उद्देश्य प्रस्तावित संशोधनों पर एक सोच-समझ भरी बहस को बढ़ावा देना है। इस लेख में हम देश में ईंटों की मांग को पूरा करने के लिए फ्लाई ऐश की उपलब्धता के दृष्टिकोण से प्रस्तावित संशोधन की जांच करेंगे।

तापीय विद्युत संयंत्रों (थर्मल पावर प्लांटों) से फ्लाई ऐश की उपलब्धता और उपयोग क्या हैं?

केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) [1] द्वारा उपलब्ध कराए गए नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, भारत में 2017-18 में थर्मल पावर प्लांटों से 196 मिलियन टन (एमटी) फ्लाई ऐश उत्पन्न हुआ, जिसमें से 131 मिलियन टन (कुल उत्पन्न फ्लाई ऐश का 67%) का उपयोग किया गया।

फ्लाई ऐश रेगुलेशन, 1999 में मुख्य प्रस्तावित संशोधन क्या हैं?

प्रस्तावित संशोधनों का उद्देश्य ईंटों और ब्लॉकों के उत्पादन में फ्लाई ऐश के उपयोग को बढ़ावा देना है। वर्तमान में भारत प्रति वर्ष लगभग 25,000-30,000 करोड़ ईंटों का उत्पादन करता है, जिनमें से लगभग 80% उत्पादन पकी/लाल मिट्टी की ईंटों का है, और फ्लाई ऐश ईंटों और ब्लॉकों का अंश 10% से कम है। संशोधन का उद्देश्य देश में ज्यादातर पकी/लाल मिट्टी के ईंटों के उत्पादन के बदले फ्लाई ऐश ईंटों और ब्लॉकों (जिनमें वजन द्वारा न्यूनतम 50% फ्लाई ऐश होना चाहिए) का उत्पादन करना है। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए, मसौदे के दो मुख्य प्रस्ताव हैं।

क) लाल मिट्टी ईंट निर्माण इकाइयों को फ्लाई ऐश ईंट निर्माण इकाई में बदलने को अनिवार्य करना

विनियमन का प्रस्ताव है कि कोयला या लिग्नाइट आधारित थर्मल पावर प्लांट के 300 किमी. के दायरे में कोई नया लाल मिट्टी ईंट भट्ठा स्थापित नहीं किया जाएगा, और 300 किमी. के भीतर स्थित सभी लाल मिट्टी के ईंट भट्ठों को एक वर्ष के भीतर फ्लाई ऐश ईंट या ब्लॉक निर्माण इकाई में परिवर्तित किया जाएगा। अगर हम भारत के मानचित्र पर हर थर्मल पावर प्लांट को केंद्र मान कर 300 किमी. के घेरे बनाएँ तो पूर्वोत्तर भारत और हिमालय क्षेत्र के कुछ भागों को छोड़कर करीब करीब पूरा भारत ही उसमें आ जायेगा। इस प्रकार, वास्तविकता में विनियमन का प्रस्ताव है कि 150,000-200,000 लाल मिट्टी ईंट बनाने वाली मौजूदा इकाइयों को (जिनकी वार्षिक उत्पादन क्षमता 20,000 से 25,000 करोड़ ईंट/वर्ष है) एक वर्ष के अन्दर अपनी ईंट निर्माण तकनीक को बदलकर फ्लाई ऐश ईंट या ब्लॉक निर्माण इकाई में बदलना होगा।

स्रोत: Centre for Science and Environment, New Delhi

ख) फ्लाई ऐश ईंट निर्माण इकाइयों को फ्लाई ऐश की आपूर्ति करना थर्मल पावर प्लांटों के लिये अनिवार्य बनाना

मसौदा विनियमन में विद्युत संयंत्रों के लिये यह अनिवार्य होगा कि:

  • फ्लाई ऐश ईंटों, ब्लॉकों और टाइलों के निर्माण के लिये थर्मल पावर प्लांट कम से कम 20% सूखी ईएसपी फ्लाई ऐश उपलब्ध करायेंगे।
  • फ्लाई ऐश ईंटों, ब्लॉकों और टाइलों के निर्माण वाली इकाइयों को थर्मल पावर प्लांट करीब करीब मुफ्त (रु 1/टन) में फ्लाई ऐश उपलब्ध कराएगा और 300 किमि. तक की दूरी वाली फ्लाई ऐश ईंटों के निर्माण वाली इकाइयों तक फ्लाई ऐश पहुँचाने का पूरा खर्च भी थर्मल पावर प्लांट वहन करेगा।

विभिन्न परिदृश्यों के तहत फ्लाई ऐश ईंट के संभावित उत्पादन का विश्लेषण

नीचे दिए गए विश्लेषण में विभिन्न परिदृश्यों में फ्लाई ऐश ईंटों का संभावित उत्पादन और पकी मिट्टी की ईंटों को फ्लाई ऐश ईंटों से बदलने की व्यवहार्यता की जांच की गई है।

परिदृश्य 1: ईंटों के उत्पादन के लिए कुल वार्षिक फ्लाई ऐश उत्पादन का 20% उपयोग में लाया जाना

यदि यह माना जाता है एक फ्लाई ऐश ईंट (आकार: 230 x 110 x 70 मिमि) का वजन 2.8 किलोग्राम है और उसमें फ्लाई ऐश का वजन 50% है, तो एक ईंट बनाने में 1.4 किलोग्राम फ्लाई ऐश की मात्रा काम आ जाएगी। यदि पूरे देश में फ्लाई ऐश के कुल वार्षिक उत्पादन का 20%, यानी कि 39 मिलियन टन (2017-18 में), का ईंटों के उत्पादन में उपयोग किया जाए तो कुल 2,800 करोड़ फ्लाई ऐश से बनी ईंट/वर्ष उत्पादित होंगी। चूँकि फ्लाई ऐश का 9% पहले से ही उपयोग किया जा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप 1,300 करोड़ फ्लाई ऐश ईंटों का उत्पादन होता है, अतिरिक्त फ्लाई ऐश ईंटों का उत्पादन 1,500 करोड़ ईंट होगा। यह मिट्टी की पकी हुई ईंटों के कुल उत्पादन यानी 20,000-25,000 करोड़ ईंट से काफी कम है। इस अतिरिक्त उत्पादन के परिणामस्वरूप फ्लाई ऐश ईंटों द्वारा लाल/पकी मिट्टी की ईंटों के वर्तमान उत्पादन का केवल करीब 6-7% प्रतिस्थापन होगा।

परिदृश्य 2: ईंटों के उत्पादन के लिए अप्रयुक्त वार्षिक फ्लाई ऐश उत्पादन का 100% (अथवा कुल वार्षिक फ्लाई ऐश उत्पादन का 33%) उपयोग में लाया जाना

प्रस्तावित नियमन से परे अगर हम यह मानें कि अप्रयुक्त फ्लाई ऐश के पूरे वार्षिक उत्पादन का (अथवा कुल वार्षिक फ्लाई ऐश उत्पादन का 33%, यानी कि 65 मिलियन टन (2017-18 में) का) ईंटों के उत्पादन के लिए उपयोग किया जाता है, तो इसका परिणाम 4,600 करोड़ अतिरिक्त फ्लाई ऐश ईंटों का उत्पादन होता। इस अतिरिक्त उत्पादन के परिणामस्वरूप फ्लाई ऐश ईंटों द्वारा लाल/पकी मिट्टी की ईंटों के वर्तमान उत्पादन का केवल करीब 20% प्रतिस्थापन होगा।

परिदृश्य 3: पोंड ऐश का उपयोग

अब तक हमने फ्लाई ऐश के वार्षिक उत्पादन/ उपलब्ध सूखी ईएसपी फ्लाई ऐश के उपयोग का विश्लेषण किया है क्योंकि प्रारूप संशोधन इसी से सम्बन्धित है। फ्लाई ऐश के वार्षिक उत्पादन के अलावा गीली राख (राख के तालाबों में संचित की गई फ्लाई ऐश और बॉटम एश) भी उपलब्ध हैं और कई पाठक फ्लाई ऐश ईंटों और ब्लॉकों के उत्पादन में इस गीली राख के उपयोग की सम्भावना जानने के लिए उत्सुक होंगे। सीईए के आंकड़े के आधार पर उपलब्ध गीली राख की मात्रा 1,397 मिलियन टन होने का अनुमान है। अगर यह मान लिया जाए कि कुल उपलब्ध गीली राख का 50% फ्लाई ऐश ईंट बनाने के लिए उपलब्ध कराया जाएगा, तो इसके परिणामस्वरूप लगभग 50,000 करोड़ ईंटों का उत्पादन होगा जो पकी/लाल मिट्टी की ईंटों के 2 वर्षों के उत्पादन के बराबर होगा।

निष्कर्ष

प्रारूप संशोधन का उद्देश्य थर्मल पावर प्लांटों के 300 किमी. के दायरे में, सभी लाल/पकी मिट्टी के ईंटों के उत्पादन को फ्लाई ऐश ईंटों और ब्लॉकों में बदलना है। विश्लेषण से पता चलता है कि ईंटों के भट्ठों को उपलब्ध फ्लाई ऐश की मात्रा से वर्तमान में देश में बन रहीं पकी/लाल मिट्टी की ईंटों का एक बहुत छोटा अंश (6 से 20%) ही प्रतिस्थापित किया जा सकता है। फ्लाई ऐश की उपलब्धता और ईंटों की मांग में क्षेत्रीय असमानताओं के कारण इन प्रतिस्थापन स्तरों तक पहुंचना भी चुनौतीपूर्ण होगा। 2050 तक ईंटों की मांग में लगातार वृद्धि और निकट भविष्य में कोयला आधारित ताप विद्युत उत्पादन में ठहराव के कारण इन प्रतिस्थापन स्तरों को पूरा करना और भी अधिक चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

उपरोक्त निष्कर्षों के आधार पर यह प्रस्ताव कि “इस अधिसूचना के प्रकाशन के बाद कोयले या लिग्नाइट आधारित थर्मल पावर प्लांट से 300 किमी. के दायरे में कोई नया लाल मिट्टी का ईंट भट्ठा स्थापित नहीं किया जाएगा। 300 किलोमीटर के भीतर स्थित मौजूदा लाल मिट्टी ईंट भट्ठों को एक वर्ष के भीतर फ्लाई ऐश आधारित ईंटों या ब्लॉक या टाइल्स निर्माण इकाई में परिवर्तित किया जाएगा” एक व्यवहार्य विकल्प प्रतीत नहीं होता।

(अधिक विवरण और अतिरिक्त विश्लेषण के साथ एक लेख डाउनलोड करने के लिए, यहां क्लिक करें.)

(अगले लेख में हम फ्लाई ऐश के परिवहन की ऊर्जा और पर्यावरण प्रभाव की खोज करेंगे। इस लेख पर कोई भी टिप्पणी mail@brickguru.in और sameer@gkspl.in पर भेजी जा सकती है।)

संदर्भ

1. CEA, 2018a. Report on Fly Ash Generation at coal/lignite based thermal power stations and it’s utilization in the country for the year 2017-18. Central Electricity Authority, Ministry of Power, Govt of India, New Delhi, December 2018.

2. CEA, 2018b. National Electricity Plan (Volume 1: Generation). Central Electricity Authority, Ministry of Power, Govt of India, New Delhi, January 2018.

3. BMTPC, 2018. Building Materials and Housing Technologies for Sustainable Development (Editors: Shailesh Kr. Agarwal, S.K. Gupta and Dalip Kumar). Proceedings of the National Seminar on Emerging Building Materials and Construction Technologies, February 22-23, 2018, New Delhi organized by the Building Materials and Technology Promotion Council – BMTPC (pp 294-306).

समीर मैथिल

लेखक: डायरेक्टर, ग्रीनटेक नॉलेज सौल्यूशन्स प्राइवेट लिमिटेड

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