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ईंट फायरिंग के लिए प्राकृतिक गैस का उपयोग – क्या यह भारत में संभव है?

समीर मैथिल | शुक्रवार 11 सितम्बर 2020

अगले कुछ वर्षों में भारत के बिल्डिंग स्टॉक में कई गुना वृद्धि होने की सम्भावना है। नई इमारतों का निर्माण आवश्यक है, विशेष रूप से शहरों में, जहाँ हर व्यक्ति को रहने के लिए आवास उपलब्ध कराना एक बहुत बड़ी जरूरत है। प्रश्न यह है कि यह निर्माण,पर्यावरण को कम से कम हानि पहुंचाए बिना कैसे हो ?

अगर हम चाहते हैं कि जिस विकास को हम प्रोत्साहित कर रहे हैं, हम उसी के शिकार ना हो जाये, तो हमें निर्माण उद्योग में कुछ बुनियादी बदलाव लाने होंगे।

इस समय निर्माण उद्योग से जुड़े सभी उद्योगो व संगठनों को पर्यावरण संरक्षण के व्यावहारिक समाधानों के बारे में सोचने की आवश्यकता है, और एक ऐसा व्यावहारिक समाधान, ईंट फायरिंग के लिए प्राकृतिक गैस का उपयोग हो सकता है।

भारत के संदर्भ में, यह एक अभिनव कदम की तरह लग सकता है, आपको यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि यूरोप में 1960 के दशक से ईंट फायरिंग के लिए प्राकृतिक गैस का उपयोग हो रहा है। इसके कई लाभों को देखते हुए, 1970 और 80 के दशक में यूरोप में ईंट फायरिंग के लिए प्राकृतिक गैस का उपयोग तेजी से फैला, 1990 तक यूरोप में ईंट बनाने में इस्तेमाल होने वाले ईंधन का लगभग 80% भाग, प्राकृतिक गैस द्वारा पूरा किया जा रहा था।

प्राकृतिक गैस एक क्लीनर ईंधन है। इसका मतलब है कि यह पर्यावरण को कम प्रदूषित करती है, क्योंकि यह कम कण पदार्थ उत्पन्न करती है और कम CO2 उत्सर्जन करती है। ऐसा लग सकता है कि ईंट उद्योग के प्राकृतिक गैस में शिफ्ट होने के लिए यह पर्याप्त कारण है, लेकिन इसके और भी फायदे हैं। प्राकृतिक गैस के उपयोग से ईंटों की समग्र गुणवत्ता में सुधार आता है, और भट्टों में काम करने वाले कर्मचारियों के स्वास्थ्य के लिए भी यह बेहतर है।

हमने देखा की प्राकृतिक गैस के कई फायदे हैं, लेकिन व्यवहार्यता पहलुओं के बारे में क्या? यहीं पर हम यूरोपीय ईंट उद्योग के अनुभवों से महत्वपूर्ण सबक ले सकते हैं।

हम ऊपर दिए गए ग्राफ से देख सकते हैं, कि यूरोपीय ईंट उद्योग ने धीरे-धीरे प्राकृतिक गैस को अपनाया। यह तब हुआ जब प्राकृतिक गैस की उपलब्धता और पाइपलाइन नेटवर्क का विस्तार हुआ। इसके अतिरिक्त, बेहतर डिज़ाइन के ड्रायर और भट्टों जैसी प्रौद्योगिकियों की उपलब्धता, उच्च गति बर्नर का उपयोग आदि के द्वारा प्राकृतिक गैस से पके उत्पादों को आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाने में मदद मिली ।

हालांकि, इस तथ्य को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता कि यूरोप में भट्टों को प्राकृतिक गैस में बदलने की प्रक्रिया में करीब 30 साल का समय लगा । तो क्या यह भारत में वास्तव में संभव है?

अच्छी खबर यह है कि यह बदलाव भारत में शुरू हो गया है । एक उत्साहजनक उदाहरण वीनरबर्गर इंडिया का है, जिन्होंने कर्नाटक के कुनिगल में अपने कारखाने को प्राकृतिक गैस फायरिंग में बदल दिया है। इस कारखाने में बनाई जा रही ईंटें, हॉलो ईंटें हैं, जो पारंपरिक सॉलिड ईंटों की तुलना में 60% हल्की होती हैं, हल्की ईंटों के इस्तेमाल से इमारत के डेड लोड में कमी आती है , तथा निर्माण की गति में तेजी लाई जा सकती है I इसके अतिरिक्त, पंजाब सरकार ने हाल ही में घोषणा की कि वह कोयले से प्राकृतिक गैस में ईंट भट्टों को स्थानांतरित करने की संभावना का पता लगाएगी। राज्य के कई भट्टों को पहले से ही अधिक ऊर्जा कुशल ज़िगज़ैग भट्टों में स्थानांतरित कर दिया गया हैं। सरकारी अधिकारियों ने ध्यान दिया कि ये भट्टियां अपने डिजाइन में बहुत अधिक बदलाव के बिना प्राकृतिक गैस का उपयोग कर सकती हैं। सीएनजी पंजाब में पहले से ही व्यापक रूप से उपलब्ध है ।  यहां तक ​​कि हमारे पड़ोसी बांग्लादेश में भी कई दशकों से कुछ हॉफमैन भट्टों का संचालन प्राकृतिक गैस से  हो रहा है।

तो हाँ, भारत में प्राकृतिक गैस के साथ ईंट फायरिंग संभव है, लेकिन इसको व्यवहारिक बनाने के लिए काफी काम करने की जरुरत है।

बांग्लादेश में एक प्राकृतिक गैस हॉफमैन भट्ठा

जहाँ यूरोप में, ईंट उद्योग एक संगठित उद्योग है और ईंट भट्टों में टनेल भट्ठा  तकनीक का उपयोग किया जाता है I भारत में ईंट उद्योग असंगठित है, जिसमें ज्यादातर छोटे उद्यम हैं और ज़िग-ज़ैग, FCBTK और क्लैंप भट्ठा प्रौद्योगिकियों का उपयोग करते हैं। मौजूदा भट्टों को प्राकृतिक गैस फायरिंग में बदलने के लिए टेक्नोलॉजी विकसित करने की आवश्यकता है। ईंट उद्योग ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े इलाको में बिखरे हुए हैं, यह निश्चित रूप से ईंट भट्टों को प्राकृतिक गैस की आपूर्ति के लिए एक चुनौती होगी। इस नई प्रक्रिया में स्थानांतरण के लिए प्राकृतिक गैस इंफ्रास्टक्चर (पाइप लाइन) और भट्टों में बड़े निवेश की आवश्यकता है। इसका मतलब है कि भट्ठा मालिकों और ईंट निर्माताओं को बैंक से लोन की उपलब्ता व् ट्रेनिंग की व्यवस्था जरुरी होगी ।

यह एक कठिन कार्य लग सकता है, लेकिन जैसा यूरोप का अनुभव दिखाता है कि इस तरह का निवेश सभी पक्षों यानि उद्योग व समाज के लिए हित कारक है।

समीर मैथिल

लेखक: डायरेक्टर, ग्रीनटेक नॉलेज सौल्यूशन्स प्राइवेट लिमिटेड

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