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कोरोना वायरस का ईंट उद्योग पर प्रभाव (पार्ट १)

समीर मैथिल | रविवार 5 अप्रैल 2020

भारत के ज्यादातर राज्यों में ईंट का उत्पादन ६-७ माह , यानि नवंबर/दिसंबर में शुरू होकर मई/ जून में बारिश आने तक होता है। कोरोना महामारी ने ईंट उद्योग को ईंट उत्पादन सीजन के बिल्कुल बीचोंबीच प्रभावित किया है। यह महामारी उस वक़्त आयी है, जब ईंट उद्योग पहले से ही ईंट डिमांड में कमी, सर्दी के महिनो में प्रदुषण की वजह से ईंट उत्पादन पर लगी रोक, जनवरी से मार्च माह के दौरान आयी असमय बारिश,आदि, की मार से जूझ रहा था। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार व पश्चिम बंगाल से मिली जानकारी से मालूम होता है की इन सब राज्यों में लॉक-डाउन के दौरान ज़्यदातर ईंट भट्टे कार्य कर रहे है। मगर इनमे से कई सारे भट्टे, कोयले की कमी, ईंटो की बिक्री बंद होने की वजह से नगदी की कमी, के चलते दिक्कत में हैं। हम इस लेख़ में कोरोना महामारी का इस साल ईंटो की डिमांड पर पड़ने वाले प्रभाव पर चर्चा करेंगे।

पिछले हफ्ते एनरॉक प्रॉपर्टी कंसल्टेंट्स प्राइवेट लिमिटेड नाम की प्रॉपर्टी रिसर्च संस्था ने एक नयी रिपोर्ट “Covid १९ इम्पैक्ट ऑन द रियल एस्टेट सेक्टर ” पब्लिश की है। इस रिपोर्ट में कोरोना वायरस का देश के बड़े शहरों में आर्गनाइज्ड रियल एस्टेट सेक्टर पर पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण किया गया है। रेजिडेंशियल सेक्टर ईंटो का सबसे बड़ा मार्किट है , इस लिए हम इस रिपोर्ट में रेजिडेंशियल सेंटर पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में क्या कहा गया है, उस पर धयान देंगे। इस रिपोर्ट के अनुसार :

  1. कोरोना वायरस लॉक-डाउन की वजह से मकानों की बिक्री से सम्बंधित, साइट विजिट, मीटिंग्स, प्रॉपर्टी डॉक्यूमेंटेशन, रजिस्ट्रेशन आदि का काम सम्पूर्ण रूप से बंद हो गया है। मकानों की बिक्री में आयी इस कमी के कारण बिल्डर्स के कैश फ्लो बुरी तरह से प्रभावित हुआ है, और यह स्थिति अभी कुछ वक्त तक कायम रह सकती है।
  2. कंस्ट्रक्शन मैटेरियल्स जैसे सीमेंट, स्टील, ईंट आदि की सप्लाई चेन बुरी तरह प्रभावित हुई है, कई कंस्ट्रक्शन साइट्स पर काम करने वाले मजदूर गांव पलायन कर गए है। लॉक-डाउन हटने के बाद, सप्लाई चेन को दुरुस्त होने और मज़दूरों को वापस आने में और काम को फिर से शुरू करने में कुछ हफ्तों या महीनो का समय लग सगता है।
  3. पिछले कुछ वर्षो में नए रेजिडेंशियल प्रोजेक्ट्स जिनपर काम शुरू हुआ है उसमे लगभग ४०% अफोर्डेबल हाउसिंग प्रोजेक्ट्स है। अफोर्डेबल हाउसिंग प्रोजेक्ट के ख़रीददार, निम्न या निम्न-मध्य वर्ग के परिवार है। इन परिवारों की आर्थिक स्थिति पर लॉक-डाउन का सबसे ज्यादा बुरा प्रभाव बढ़ने की आशंका है। यह परिवार ज्यादातर ऐसी नौकरियों या काम धंधो में लगे है, जिसमे “घर से काम” (work from home) करने की संभावना कम है , इस लिए इन परिवारों की आमदनी में कमी आने की ज्यादा आशंका है, और इसके चलते कई परिवार अपने घर खरीदने के निर्णय को कुछ समय के लिए टाल सकते है।

कुल मिला कर यह रिपोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचती है की वर्ष २०२० में मकानों की बिक्री में २५-३५% तक की कमी आ सकती है। इसके आलावा नए रिहायशी मकानों के प्रोजेक्ट्स जो वर्ष २०२० में लांच होने वाले थे, उनमे भी २५-३०% की कमी आ सकती है , जिसका असर वर्ष २०२१ में ईंटो की डिमांड पर पड़ सकता है।

जहाँ एनरॉक की रिपोर्ट बड़े शहरों के सन्दर्भ में थी, वही हमें ईंटो के ग्रामीण और छोटे शहरों के मार्किट पर भी नज़र डालनी चाहियें, जो ईंटो की बिक्री के ५०% से बड़े भाग के लिए जिम्मेदार है। इन क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था कृषि आधारित है। उत्तर भारत में अभी रबी की कटाई का समय है जब गेहूं, सरसों व दालों की फसलों की कटाई होनी है, और उन्हें मंडी में बिक्री के लिए पहुंचना है। कई क्षेत्रों में कटाई और मंडी सन्चालन के लिए मजदूरों की कमी है। अख़बारों की खबरों के अनुसार कई जग़ह कृषि मंडी काम नहीं कर रही, तथा ट्रकों व कंबाइन हारवेस्टरों के संचालन में दिक्कते है। कटाई में देरी के कारण खेतों में खड़ी हुई फसल पर धूप और बरसात का बुरा असर पड़ सकता है। जो किसान फलों और सब्जियों का उत्पादन करते है उनको भी कोरोना महामारी की वजह से अपने उत्पादों के ट्रांसपोर्ट में आने वाली दिक्क़तो की वजन से नुकसान उठाना पड़ रहा है। कुल मिला कर शहरी इलाको के तरह, ग्रामीण इलाको में भी कंस्ट्रक्शन की गति में कमी आने के कारण, ईंटो के डिमांड में काफी कमी आने की आशंका है।

इस विश्लेषण से यह साफ़ है की कोरोना महामारी के कारण आने वाला समय, ईंट उद्योग के लिए एक कठिन दौर होगा । इसके चलते ईंट उद्योग को जल्दी से क़दम उठाने की ज़रूरत है। हमारी समझ में दो मुख्य कदम यह है:

  • ईंट भट्टों में उत्पादन लागत में कमी लाना, वेस्टज को कम करना और उत्पादगता को बढ़ाना। ज़िग-ज़ैग भट्टा टेक्नोलॉजी को ठीक ढंग से अपनाना इसका एक उदहारण है, ऐसे और भी कई उपाय हो सकते है।ज़िग-ज़ैग टेक्नोलॉजी के अपनाने से २०-२५% ईंधन की बचत होती है तथा, अवल्ल ईंटो की पर्सेंटेज बढ़ा कर ८०-९०% तक किया जा सकता है। हाल के वर्षो में कई हज़ार भट्टो ने ज़िग-ज़ैग टेक्नोलॉजी अपनाई है मगर इसमें से बहुत सारे ईंट भट्टे सही ढंग से नहीं चलाये जा रहे है। जलाई और भराई करने वाले कामगारों की ट्रेनिंग करा के ज़िग-ज़ैग भट्टों को सही ढंग से चलाना इस वक़्त सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिये। ब्रिकगुरु में हमने इस विषय पर काफी जानकारी उपलब्ध कराई है,और आने वाले समय में और नई जानकारी उपलब्ध कराते रहेंगे।
  • ईंट उद्योग जो देश में रोजगार देने वाला एक प्रमुख उद्योग है, उसे जल्दी से संगठित होकर राज्य और केंद्र सरकार के सामने अपनी बात व मांगे रखनी चाहिए, जैसे:
    • कोयले की निर्बाध सप्लाई सुनिश्चित कराना,
    • स्किल मिशन के फंड्स को ईंट भट्टे के मजदूरों को प्रशिक्षित करने में इस्तेमाल करना,
    • ईंट उद्यमियों को नई तकनीक अपनाने के लिए बैंको से लोन की व्यवस्था करना ,
    • पर्यावरण और माइनिंग रूल्स और रेगुलेशंस को सरल बनाना,
    • सरकारी कंस्ट्रक्शन में मिटटी की ईंटो की खरीद करना ।

हम आपकी बात सुनना चाहेंगे। आपके इलाके में ईंट उद्योग पर कोरोना माहमारी का क्या प्रभाव पड़ रहा है ? आप उत्पादन लागत में कमी लाने , वेस्टज को कम करने और उत्पादगता को बढ़ाने के लिए क्या उपाय कर रहें है ? आप सरकार से किस तरह की मदद चाहते है? आप अपने विचार हमें व्हाट्सएप्प 9711153307 या इ-मेल mail@brickguru.in द्वारा १२ अप्रैल तक भेज सकते है , हम कुछ चुने हुए विचारो को अपने अगले ब्लॉग में शामिल करेंगे।

समीर मैथिल

लेखक: डायरेक्टर, ग्रीनटेक नॉलेज सौल्यूशन्स प्राइवेट लिमिटेड

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